श्माशान में दिन गुजार रहीं पूजा, बच्चों को ‘छोटी सी खुशी’ दे रहीं नमिता… ये हैं नवभारत के प्रेरणादी

AdminUncategorized2 months ago58 Views

नई दिल्ली: लावारिस लाशों के बीच श्मशान/कब्रिस्तान में दिन गुजारने वाली 27 साल की पूजा शर्मा। तकरीबन 3 साल पहले पूजा की जिंदगी भी आम लड़कियों की तरह ही थी। उम्र के इस पड़ाव पर जिन हाथों से सपने बुने जाने थे। उन हाथों ने 15 मार्च 2022 को श्मशान में चिता की राख को माथे से मल लिया।

खुद पूजा बताती हैं 5 साल पहले तक खुशहाल परिवार था। परिवार में मां ममता, भाई रामेश्वर थे। बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी। पिता दिल्ली मेट्रो में जॉब कर रहे थे। भाई एंबुलेंस चलाते थे। फिर एक दिन 20 दिसंबर 2019 को 45 वर्षीय मां की दिमाग की नस फटने से अचानक मौत हो जाती है।

परिवार उस पीड़ा से उबर भी नहीं पाया था कि 13 मार्च 2022 की रात वह खाना खाकर अपने भाई के साथ घर के बाहर टहल रही थीं। तभी तीन चार बदमाशों ने मामूली बहस के बाद पूजा की आंखों के सामने उनके भाई की गोली मारकर हत्या कर दी। यहीं से पूजा की जिंदगी बदल गई।

भाई की चिता की राख को माथे पर मल लिया

बेटे की हत्या का पिता भी सदमा बर्दाश्त न कर सके। उसी रात वह कोमा में चले गए। पूजा शर्मा सिर पर पगड़ी बांधकर अपने भाई का अंतिम संस्कार कर रही थीं। दो दिन बाद 15 मार्च को जब अपने भाई की अस्थियां लेने श्मशान पहुंची। तब वहां शिवलिंग से लिपट कर खूब रोईं। वजह, अस्पताल में भाई के शव को लावारिस छोड़ आई थीं। इसके बाद अस्थियां चुनते समय भाई की चिता की राख को अपने माथे पर मल लिया। सौगंध खाई, लावारिस शवों का ‘वारिस’ बनेगी पूजा।

हरिद्वार में हर महीने करती हैं पिंड दान

शादी के लिए मां ने जो जूलरी बनवाई थी। वह उन्होंने बेच दी। भाई की आखिरी निशानी स्कूटी भी बेच दी। प्रॉपर्टी गिरवी रख दी। सारा पैसा लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की सेवा में खर्च करने लगीं। अब तक साढ़े पांच हजार लावारिस शवों का न सिर्फ अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। हर महीने हरिद्वार में पिंड दान करती हैं। अब तक साढ़े पांच सौ शवों को फ्री एंबुलेंस के जरिए उनके गांव भेज चुकी हैं।

आकाश के नीचे होती है पढ़ाई

पढ़ाई लिखाई खुले आकाश के नीचे होती हैं, जहां सीमाएं नहीं होतीं, वहां से उड़ान भरते हैं हमारे बच्चे। 10 बच्चों के साथ द्वारका की नमिता चौधरी ने कंस्ट्रक्शन लेबरों के बच्चों को पढ़ाने और उनके सपनों में रंग भरने का सपना शुरू किया। अब यह सफर कहीं आगे बढ़ चुका है।

झुग्गी-झोपड़ियों में चल रहा स्कूल

नमिता की टीम कभी साइकल पर तो कभी पैदल चलते हुए कंस्ट्रक्शन साइटों पर जाती और पहले बच्चों के पैरंट्स को तैयार करती और वहीं उनके स्लम में उनके लिए क्लासेस लगाती। द्वारका सेक्टर-20 में श्रमिक झुग्गी झोंपड़ियों के बीच फुटपाथ पर उनका ऐसा स्कूल चल रहा है।

मिलकर लगवाए मोबाइल टॉयलेट

इस स्कूल की शुरुआत 2020 में हुई थी। यह परिवार आदिवासी मछली पालकों के हैं। नमिता को पता चला कि यह बच्चे पढ़ते नहीं है। यहां बच्चों की संख्या काफी अधिक थी। इसके बाद उन्होंने पोचनपुर सरकारी स्कूलों में बच्चों का एडमिशन करवाया, प्रशासन ने मिलकर मोबाइल टॉयलेट लगवाए।

बच्चों के चेहरों पर दिखती है खुशी

नमिता चौधरी छोटी सी खुशी संस्था की फाउंडर हैं और अब समाज के वंचित वर्ग के बच्चों और महिलाओं के विकास का काम बीते दस साल से कर रही हैं। 10 साल में वह हजारों बच्चों और सैकड़ों महिलाओं को साक्षर और स्वावलंबी बना चुकी हैं। फुटपाथ और खुले आसमान में चलने वाले इन स्कूलों में बच्चों के चेहरों पर खुशी साफ दिखती है।

कई बच्चे कर रहे बड़े पदों पर जॉब

इनसे आगे बढ़ते हुए अब नमिता थैलीसीमिया के बच्चों पर भी काम काम करती हैं। जिला प्रशासन और दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर इन बच्चों के विकास के लिए काम करती हैं और विभिन्न स्कीमों का लाभ दिलवाती है। इनसे जुड़कर कई बच्चे अब पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पदों पर जॉब कर रहे हैं। सिविल सर्विसेज की तैयारियां भी कर रहे हैं।

Read More

0 Votes: 0 Upvotes, 0 Downvotes (0 Points)

Leave a reply

Recent Comments

No comments to show.

Stay Informed With the Latest & Most Important News

I consent to receive newsletter via email. For further information, please review our Privacy Policy

Advertisement

Loading Next Post...
Follow
Sign In/Sign Up Sidebar Search Trending 0 Cart
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...

Cart
Cart updating

ShopYour cart is currently is empty. You could visit our shop and start shopping.