भारत, पाकिस्तान दोनों ने विदेश में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे… आखिर किसने जीती कूटनीतिक लड़ाई?

kisded kisdedUncategorized7 hours ago2 Views

वाल्टर सी. लाडविग III
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव हुआ। इसके बाद दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल दुनिया के कई देशों की राजधानियों में पहुंचे। उनका मकसद था कि वे अपनी बात रखें, लोगों की सहानुभूति जीतें और इस संकट के बाद की कहानी को अपने हिसाब से पेश करें। लंदन में हुई कुछ मुलाकातों को देखकर ऐसा लगा कि दोनों देशों के बीच राजनयिक जंग चल रही है। ये जंग ब्रीफिंग रूम, थिंक टैंक और प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रमों में हुई। इस दौरान जो बातें कही गईं और जो बातें नहीं कही गईं, दोनों ही बहुत कुछ बता रही थीं।

प्रतिनिधिमंडलों में फर्क था। भारत की तरफ से जो प्रतिनिधिमंडल आया था, उसमें सभी पार्टियों के सांसद थे। इससे ये पता चलता था कि भारत इस मुद्दे पर एकजुट है। इस प्रतिनिधिमंडल में रवि शंकर प्रसाद और पंकज सरन जैसे बड़े नेता शामिल थे। वहीं, पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल में ज्यादातर तकनीकी विशेषज्ञ और अनुभवी लोग थे, जैसे कि शेरी रहमान और बिलावल भुट्टो जरदारी। भारत का प्रतिनिधिमंडल एकजुट दिख रहा था, जबकि पाकिस्तान का मकसद था कि वो अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाए।

भारत के प्रतिनिधिमंडल ने “ऑपरेशन सिंदूर” को एक बड़े बदलाव के तौर पर पेश किया। उन्होंने कहा कि अब आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ एक बार नहीं होगी, बल्कि ये एक नीति है। उन्होंने ये भी कहा कि आतंकवाद एक वैश्विक खतरा है और दुनिया को इसे समझना चाहिए। भारत ने ये भी कहा कि वो आतंकवाद के खिलाफ जो लड़ाई लड़ रहा है, वैसी ही लड़ाई पश्चिमी देश भी लड़ रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवाद का अड्डा बताया।

मैंने देखा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल थोड़े निराश थे। कई देशों ने पहलगाम हमले के बाद भारत के साथ सहानुभूति जताई और ये भी माना कि भारत को कार्रवाई करने का हक है। लेकिन, बहुत कम देशों ने पाकिस्तान की खुलकर निंदा की। भारत के प्रतिनिधि अपनी बात को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन उनकी बात करने का तरीका थोड़ा सख्त था। थिंक टैंक में उनकी बात करने का तरीका औपचारिक था, लेकिन प्रवासी भारतीयों के साथ उनकी बातचीत में ज्यादा गुस्सा था।

ज्यादातर लोगों ने भारत की बात को माना, लेकिन कुछ लोगों ने ये भी कहा कि भारत रूस के यूक्रेन पर हमले को एक साझा खतरा नहीं मानता है, लेकिन अब वो पाकिस्तान से होने वाले आतंकवाद पर दुनिया से समर्थन मांग रहा है।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल कहां चूक गया

भारतीय प्रतिनिधिमंडल घरेलू कट्टरता के मुद्दे पर फंस गया। पता चला कि पहलगाम हमले के दो संदिग्ध भारतीय नागरिक थे। जब उनसे पूछा गया कि भारत सरकार युवाओं को हिंसा की तरफ जाने से कैसे रोकेगी, तो उन्होंने कहा कि “आज हालात 1990 के दशक से बेहतर हैं।” ये एक मौका था कि भारत इस चुनौती को समझदारी से पेश करे, लेकिन वो चूक गया।

भारत के प्रतिनिधि पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह के संबंध नहीं चाहते थे, लेकिन उनकी ज्यादातर बातें पाकिस्तान पर ही केंद्रित थीं। उन्होंने ये भी कहा कि उनका झगड़ा पाकिस्तान की सेना से है, वहां के लोगों से नहीं। लेकिन, सिंधु जल समझौते को रद्द करने के सवाल ने इस बात को मुश्किल बना दिया। कई ब्रीफिंग भारतीय उच्चायोग के अंदर हुईं। प्रवासी भारतीयों ने मुझसे शिकायत की कि उन्हें लगता है कि राजनीतिक पहुंच ज्यादातर भारतीय मूल के ब्रिटिश नेताओं तक ही सीमित थी। सुरक्षित खेलना एक समझदारी भरा कदम हो सकता है, लेकिन इससे नए या संशय करने वाले लोगों तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है।

पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल किससे मिला, कैसे रखी अपनी बात

पाकिस्तान ने अपनी बात को बहुत अच्छे से रखा। उनका प्रतिनिधिमंडल बड़े थिंक टैंक में गया और ये दिखाने की कोशिश की कि उन्हें गलत समझा जा रहा है। उन्होंने लॉबिंग करने वाली कंपनियों की मदद से यूरोपीय देशों के लिए एक कहानी बनाई। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान बातचीत से शांति चाहता है। उन्होंने कश्मीर को “विभाजन का अधूरा एजेंडा” बताया और आतंकवाद और पानी के मुद्दे को भी उठाया। पाकिस्तान ने कहा कि वो बातचीत करना चाहता है, पहलगाम हमले की निष्पक्ष जांच चाहता है और भारत पर सहयोग न करने या अपनी गलती साबित न करने का आरोप लगाया।

शांति की ये बात उनकी सैन्य सफलता के दावों और भारतीय नेताओं पर निजी हमलों के साथ मेल नहीं खाती थी। भारतीय मीडिया पर आरोप लगाने से उनकी बात में वजन आ सकता था, लेकिन उन्होंने कश्मीर पर कानूनी चालाकी, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को गलत तरीके से पेश किया और ये भी कहा कि भारत ने बलूचिस्तान में आतंकवाद की जिम्मेदारी ली है। सिंधु जल समझौते पर उनकी बात सबसे ज्यादा असरदार रही। उन्होंने बताया कि अगर ये समझौता टूट गया तो क्या होगा। इससे लोगों पर असर पड़ा, भले ही अभी तक कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है।

पाकिस्तान का मकसद क्या था?

एक बड़ा सवाल ये है कि पाकिस्तान का मकसद क्या था? अगर वो विदेशों में लोगों को अपनी बात समझाना चाहते थे, तो उन्होंने पुरानी गलत बातों का इस्तेमाल किया। इससे समझदार लोगों को उनकी बात पर विश्वास करना मुश्किल हो गया। अगर उनका मकसद घरेलू राजनीति करना था, तो उन्होंने विदेशों में लोगों से अच्छे से बात नहीं की।

भारत ने कहा कि सारा आतंकवाद पाकिस्तान से आ रहा है, जबकि पाकिस्तान ने कहा कि ये कश्मीर से आ रहा है। दोनों देशों की बातें बिल्कुल अलग थीं। ऐसा लग रहा था कि दोनों एक ही मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। घरेलू मीडिया के लिए ये एक अच्छा शो था, लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हुआ।

देशों की बातों में विरोधाभास साफ नजर आया

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की राय बदलने में दोनों को मिली-जुली सफलता मिली। भारत को शायद ज्यादा सफलता मिली, क्योंकि आतंकवाद को एक वैश्विक खतरा बताना यूरोपीय देशों की सुरक्षा नीतियों से मेल खाता है। वहीं, पाकिस्तान चाहता था कि दूसरे देश भारत पर बातचीत करने का दबाव डालें, जो कि बहुत मुश्किल काम है। लेकिन, दोनों ही देशों की बातों में विरोधाभास था। भारत ने कहा कि उसकी रणनीति साफ है, लेकिन वो कश्मीर में घरेलू आतंकवाद के मुद्दे पर बात करने से बच रहा था। पाकिस्तान ने शांति की बात की, लेकिन वो अपनी जीत का जश्न मना रहा था और पुरानी बातों को दोहरा रहा था। कूटनीति में, जो बातें नहीं कही जाती हैं, वो भी बहुत कुछ कहती हैं। लंदन में पिछले हफ्ते, सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि दोनों देशों ने क्या नहीं कहा, किस बात को अनदेखा किया या किसके लिए ये सब किया।

(लैडविग III किंग्स कॉलेज लंदन के युद्ध अध्ययन विभाग में सीनियर लेक्चरर हैं)

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