हिमालय में ये कौन उड़ रहा है जिसे देख दुनिया हैरान…क्या हरी दीवार बनाने में फेल हैं देश?

AdminUncategorized2 months ago68 Views

नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश में हाल ही में एक उड़ने वाला जानवर मिला है, जिससे देश और दुनिया के वैज्ञानिक हैरान हैं। यह जानवर हिमाचल के लाहौल-स्पीति में मिला है। यह खोज वैज्ञानिकों को बेहद खुशी दे सकता है, क्योंकि इस तरह के पशुओं से भारत की अंतरराष्ट्रीय साख बढ़ती है। वन विभाग के वन्यजीव प्रभाग द्वारा ने जिला की मियार घाटी में इसकी खोज की है। यहां कैमरा टैपिंग सर्वेक्षण के दौरान उडऩे वाली गिलहरी मिली है, जिसे यूपेटॉरस सिनेरेउस (woolly flying squirrel) कहा जाता है। जानते हैं भारत समेत दुनिया के कई देश जैव विविधता के लिए ग्रीन वॉल बनाने में क्यों फेल हो रहे हैं?

सात दशकों तक विलुप्त रही है यह प्रजाति

दरअसल, उत्तर-पश्चिम हिमालय की इस विलक्षण और दुर्लभ प्रजाति को लगभग सात दशकों तक विलुप्त माना जाता था, जब तक कि 1994 में इसकी पुन: खोज नहीं हुई। हिमाचल प्रदेश में इसकी मौजूदगी देश और दुनिया की जैव विविधता के लिए अहम है। दरअसल, यह सर्वेक्षण हिम तेंदुए की संख्या आकलन के लिए भारत सरकार के एक प्रोजेक्ट के तहत किया जा रहा था, जब यह गिलहरी मिली।

woolly flying squirrel

हिम तेंदुआ, लाल लोमड़ी और हिमालयी भेड़िया भी मिला

कैमरा ट्रैप्स ने ऊनी उडऩे वाली गिलहरी के अलावा कई अन्य महत्त्वपूर्ण वन्यजीवों जैसे हिम तेंदुआ, लाल लोमड़ी, हिमालयी भेड़िया और नेवले की मौजूदगी भी देखी गई। ये प्रजातियां आमतौर पर पहाड़ों के ऊपर के क्षेत्रों और चट्टानी ढलानों वाले पारिस्थितिकी तंत्र में पाई जाती हैं। यह खोज न केवल मियार घाटी की जैविक विविधता को दर्शाती हैं, बल्कि हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र की समृद्धता और संरक्षण की जरूरत को भी बताती हैं।

क्या होती है जैव विविधता, इनकी दुनिया क्या है

जैव विविधता का मतलब है पृथ्वी पर जीवन की विविधता, जिसमें सभी तरह के पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव और उनके द्वारा बनाए गए पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। जैव विविधता प्रकृति में हर उस चीज का समर्थन करती है जिसकी हमें जीवित रहने के लिए आवश्यकता होती है, जैसे भोजन, स्वच्छ पानी, दवा और आश्रय। हम जिस जैव विविधता को जानते हैं, उसे मोटे तौर पर 4 हिस्सों में बांटा जा सकता है-आनुवंशिक विविधता, प्रजाति विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र विविधता और कामकाज के हिसाब से विविधता।

Biodiversity

10 लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का मंडरा रहा खतरा

डिफेंडर्सडॉटओआरजी पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, यह एक चौंकाने वाली सच्चाई है कि अगर हम जैव विविधता संकट को दूर करने के लिए अभी से कदम नहीं उठाते हैं तो आने वाले दशकों में दुनिया भर में दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। इतनी बड़ी मात्रा में नुकसान का न केवल प्रजातियों पर बल्कि हमारे अपने स्वास्थ्य और कल्याण पर भी अकल्पनीय नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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उत्तरी अमेरिका से कहां चले गए 300 करोड़ पक्षी

1970 के बाद से उत्तरी अमेरिका से तीन अरब पक्षी गायब हो गए हैं और पिछले 40 वर्षों में अमेरिका में भृंगों की संख्या में 83 प्रतिशत की कमी आई है। अमेरिका के 41 प्रतिशत पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ही व्यापक रूप से ढहने के जोखिम में हैं। 2020 में विश्व आर्थिक मंच ने पाया कि जैव विविधता का नुकसान वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए शीर्ष खतरों में से एक है।

जैव विविधता के ये 5 खतरे बेहद टेंशन देने वाले

जैव विविधता के ये पांच खतरे बेहद महत्वपूर्ण हैं। जलवायु परिवर्तन , प्रदूषण, आवास की हानि , प्रजातियों का अत्यधिक दोहन और आक्रामक प्रजातियों को वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के लिए पांच प्रमुख खतरों के रूप में पहचाना गया है।

क्या 2030 तक खराब जैव विविधता फिर से ठीक होगा

दुनिया भर में जंगलों को फिर से हरा-भरा करने की कोशिशें तेज हो रही हैं। लोग ऐसा जलवायु परिवर्तन से लड़ने, जैव विविधता बचाने और लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के वादे के साथ कर रहे हैं। हालांकि, नेचर रिव्यूज बायोडायवर्सिटी में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि इन कोशिशों से जैव विविधता को जितना फायदा होने की बात कही जा रही है, वो अक्सर उतना नहीं होता। कई बार तो बिल्कुल भी नहीं होता। जंगलों को फिर से ठीक करना कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के Target 2 का मुख्य हिस्सा है। इसका लक्ष्य है कि 2030 तक 30% खराब हो चुके इकोसिस्टम को ठीक किया जाए। लेकिन जितना सोचा गया है और जितना हो रहा है, उसमें बहुत अंतर है। साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के रिसर्चर पेड्रो ब्रांकालियन के नेतृत्व में रिसर्चरों का कहना है कि जैव विविधता को बचाने के लिए खास ध्यान देना होगा, नहीं तो ये सिर्फ बातों में ही रह जाएगा।

क्या है कुनमिंग-मॉन्ट्रियल मसौदा, यहां जानिए

आधिकारिक तौर पर कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क नामक यह योजना संयुक्त राष्ट्र के तहत एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसे 2030 तक प्रकृति पर वैश्विक कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिए 196 देशों ने अपनाया था। इसका मसौदा 2022 में चीन के कुनमिंग शहर और कैनेडा के मॉन्ट्रियल शहर में हुई विभिन्न बैठकों में तैयार किया गया था।

यूएन के मसौदे का मुख्य मकसद क्या है

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल योजना का मकसद जैव विविधता के नुकसान से निपटना, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और स्थानीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना है। आदिवासी लोग जैविक विविधता की हानि और पर्यावरणीय क्षरण से असमान रूप से पीड़ित हैं। उनके जीवन, अस्तित्व, विकास की संभावनाओं, ज्ञान, पर्यावरण और स्वास्थ्य स्थितियों को पर्यावरणीय क्षरण से ख़तरा है। बड़े पैमाने पर औद्योगिक गतिविधियों, जहरीले अपशिष्ट, संघर्ष एवं मजबूरन प्रवासन के साथ-साथ कृषि और खुदाई के लिए वनों की कटाई जैसे भूमि-उपयोग व भूमि-आवरण में बदलाव से जोखिम खड़ा हो गया है।

कैसे सम़द्ध होगी जैव विविधता के लिए ‘हरी दीवार’

प्रकृति की हानि रोकने के लिए ठोस उपाय मौजूद हैं, जिसमें 2030 तक हमारी धरती के 30 प्रतिशत हिस्से और 30 प्रतिशत ख़राब पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण सुनिश्चित करना शामिल है। अभी 17 प्रतिशत भूमि और लगभग 8 प्रतिशत समुद्री क्षेत्र संरक्षित हैं। योजना में विकासशील देशों और स्थानीय समुदायों के लिए वित्त बढ़ाने के प्रस्ताव भी शामिल हैं।

दिनेश मिश्र

लेखक के बारे में

दिनेश मिश्र

दिनेश मिश्र, NBTऑनलाइन में असिस्टेंट एडिटर हैं। 2010 में दैनिक जागरण से पत्रकारिता की शुरुआत की। बीते 14 साल में अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रिंट, टीवी और डिजिटल तीनों का अनुभव हासिल किया। पर्सनल फाइनेंस, पॉलिटिकल, इंटरनेशनल न्यूज, फीचर जैसी कैटेगरी में एक्सप्लेनर और प्रीमियम स्टोरीज करते रहे हैं, जो रीडर्स को सीधे कनेक्ट करती हैं।… और पढ़ें

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