IO_AdminUncategorized2 months ago31 Views

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रपति की शक्तियों पर एक फैसला दिया है। यह फैसला राज्य विधानसभाओं की ओर से पास किए गए विधेयकों से जुड़ा है। इस फैसले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय लेने के लिए कह सकता है? क्या राष्ट्रपति को किसी विधेयक की संवैधानिकता पर SC से राय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है? SC के इस फैसले ने विधायिका और न्यायपालिका के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है। कोर्ट ने राष्ट्रपति को कुछ ऐसा करने को कहा है जो संविधान में जरूरी नहीं है। इससे संवैधानिक प्रक्रिया और शक्ति संतुलन को लेकर बहस छिड़ गई है।

संविधान का अनुच्छेद 201 राष्ट्रपति को यह नहीं बताता कि किसी विधेयक पर अपनी सहमति रोकने के लिए उन्हें कोई समय सीमा या कारण बताना होगा। लेकिन जस्टिस जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने राष्ट्रपति से कहा कि वे किसी विधेयक पर सहमति रोकने या उसे राज्य विधानसभा को वापस भेजने के लिए विस्तृत कारण बताएं। संविधान में ऐसा करने के लिए नहीं कहा गया है।

SC ने ऐसा लग रहा है कि विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया है। विधायी प्रक्रिया में राष्ट्रपति की सहमति भी शामिल होती है। SC ने कहा, ‘हमारी राय है कि जो विधेयक असंवैधानिक लगता है, उसका न्यायिक दिमाग से आकलन होना चाहिए। राष्ट्रपति को न केवल इस अदालत को विधेयक की वैधता के सवाल को संदर्भित करने से रोका गया है, बल्कि संवैधानिक रूप से यह उम्मीद की जाती है कि वे ऐसा करें। ऐसा इसलिए ताकि इस अदालत से विधेयक की संवैधानिकता का पता लगाया जा सके और राष्ट्रपति अनुच्छेद 201 के तहत उस विधेयक पर कार्रवाई कर सकें।’ इस बात पर कई लोगों ने हैरानी जताई है।

  • GST और इनकम टैक्स कानूनों में ‘एडवांस रूलिंग’ का प्रावधान है, लेकिन संवैधानिक मुकदमेबाजी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने कहा, ‘हमारी राय है कि संवैधानिक अदालतें किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी संवैधानिक वैधता के बारे में सुझाव देने या राय देने से नहीं रोकी जाती हैं।’ इस तरह कोर्ट ने खुद को उस प्रक्रिया में शामिल कर लिया है जो उसका क्षेत्र नहीं है।
  • SC ने राष्ट्रपति को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें उन विधेयकों के बारे में अनुच्छेद 143 के तहत राय लेनी चाहिए जो उनकी राय में असंवैधानिक हैं। ऐसे विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए रखा गया है। SC ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 143 का सहारा लेने से केंद्र सरकार के किसी विधेयक के प्रति पूर्वाग्रह या गलत इरादे होने की आशंका कम हो जाएगी।
  • अनुच्छेद 143 में विधेयकों या संवैधानिकता के सवाल का कोई जिक्र नहीं है। इसमें कहा गया है ‘यदि किसी समय राष्ट्रपति को लगता है कि कोई ऐसा कानूनी या तथ्यात्मक सवाल उठ खड़ा हुआ है, या उठने की संभावना है, जो इतना महत्वपूर्ण है कि उस पर SC की राय लेना उचित है, तो वह उस सवाल को SC को विचार के लिए भेज सकता है। SC, उचित सुनवाई के बाद, राष्ट्रपति को अपनी राय दे सकता है।’
  • SC के फैसले में कहा गया है कि ‘जहां कोई विधेयक कानून बनने पर लोकतंत्र के लिए खतरा होगा, वहां राष्ट्रपति का फैसला इस बात से निर्देशित होना चाहिए कि संविधान और कानूनों की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार संवैधानिक अदालतों को दिया गया है।’ ऐसा लगता है कि SC यह मान रहा है कि केंद्र सरकार, उसके कानून मंत्रालय और शीर्ष कानून अधिकारियों को संविधान की पेचीदगियों की समझ नहीं है और वे संवैधानिक प्रावधानों से जुड़े मामले में उचित सलाह देने में सक्षम नहीं हैं।

SC की राय सरकार पर बाध्यकारी नहीं

बेंच ने कहा, ‘यह उम्मीद की जाती है कि संघ का कार्यकारी किसी विधेयक की वैधता का निर्धारण करने में अदालतों की भूमिका नहीं निभाएगा और उसे अनुच्छेद 143 के तहत ऐसे सवाल को SC को भेजना चाहिए। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जब कार्यकारी विशुद्ध रूप से कानूनी मुद्दों से निपट रहा है तो उसके हाथ बंधे हुए हैं। केवल संवैधानिक अदालतों को ही किसी विधेयक की संवैधानिकता का अध्ययन करने और सिफारिशें देने का अधिकार है।’ बेंच को यह अच्छी तरह से पता है कि अनुच्छेद 143 के तहत SC की राय सरकार पर बाध्यकारी नहीं है।

पुराना मामला जानें

एक कानून मंत्रालय के सूत्र ने कहा कि देश में 28 राज्य हैं। अगर हर राज्य विधानसभा हर साल 5 विधेयक पास करती है और राज्यपाल उन्हें संवैधानिकता के आधार पर राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो कोर्ट के तर्क के अनुसार, राष्ट्रपति को सभी 140 विधेयकों पर SC की राय लेनी होगी।जानकारी के लिए बता दें कि राष्ट्रपति ने 2004 में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट पर SC की राय मांगी थी। इस एक्ट में पड़ोसी राज्यों के साथ जल बंटवारे के समझौतों को रद्द कर दिया गया था। SC ने 12 साल बाद 2016 में अपनी राय दी थी।

Read More

0 Votes: 0 Upvotes, 0 Downvotes (0 Points)

Leave a reply

Loading Next Post...
Follow
Sign In/Sign Up Sidebar Search Trending 0 Cart
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...

Cart
Cart updating

ShopYour cart is currently is empty. You could visit our shop and start shopping.