आज ही के दिन पाकिस्तान के मुंह पर लगा था करारा तमाचा, आतंकी कसाब को सुनाई गई थी फांसी की सजा

IO_AdminUncategorized1 month ago72 Views

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों की तलाश में सुरक्षा एजेंसियां जुटी हुई हैं। ऐसा ही हमला 2008 में मुंबई में हुआ था, जिसे 26/11 आतंकी हमला कहा जाता है। इस हमले के एक आतंकी अजमल कसाब को सुरक्षा बलों ने जिंदा पकड़ा था। आतंकी कसाब को आज के ही दिन यानी 6 मई 2010 को विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। यह सजा न केवल भारत की न्याय व्यवस्था की ताकत का प्रतीक थी, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ देश के कड़े रुख का भी संदेश थी।

मुंबई हमले: आतंक का काला दिन

26 नवंबर 2008 की रात, भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई उस समय दहल उठी जब पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने समुद्र के रास्ते शहर में प्रवेश किया। ये आतंकी कराची से नाव के जरिए मुंबई पहुंचे थे। इनमें अजमल कसाब भी शामिल था, जो इस हमले का मुख्य चेहरा बनकर उभरा। आतंकियों ने मुंबई के कई महत्वपूर्ण स्थानों को निशाना बनाया, जिनमें छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी), ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, नरीमन हाउस और लियोपोल्ड कैफे शामिल थे।

कसाब और उसके साथी अबू इस्माइल ने सीएसटी स्टेशन पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू की। उनके पास एके-47 राइफलें, हथगोले और विस्फोटक थे। इस हमले में 59 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। कसाब की तस्वीरें, जिसमें वह स्टेशन पर गोलीबारी करते हुए दिख रहा था काफी वायरल में रहीं। अन्य आतंकियों ने होटलों और नरीमन हाउस में सैकड़ों लोगों को बंधक बनाया, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई।

हमले के दौरान, भारतीय सुरक्षा बलों, जिसमें मुंबई पुलिस, एनएसजी और अन्य कमांडो शामिल थे, ने तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया। इस ऑपरेशन में 9 आतंकी मारे गए, लेकिन अजमल कसाब को 27 नवंबर 2008 को जुहू चौपाटी पर जिंदा पकड़ लिया गया। इस हमले में 166 लोग मारे गए, जिनमें 26 विदेशी नागरिक भी शामिल थे और 300 से अधिक लोग घायल हुए।

कसाब की गिरफ्तारी और शुरुआती पूछताछ

अजमल कसाब को गिरफ्तार करने के दौरान मुंबई पुलिस के जवान तुकाराम ओंबले शहीद हो गए, जिन्होंने निहत्थे होकर भी कसाब को पकड़ने की कोशिश की। गिरफ्तारी के बाद, कसाब से पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। उसने बताया कि वह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फरीदकोट गांव का रहने वाला है और लश्कर-ए-तैयबा ने उसे आतंकी ट्रेनिंग दी थी। कसाब ने अपने अपराध को कबूल किया, लेकिन बाद में अपने बयान से मुकर गया। उसने दावा किया कि उसे जबरदस्ती फंसाया गया।

फांसी तक का सफर

अजमल कसाब के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मुंबई की आर्थर रोड जेल में विशेष कोर्ट बनाया गया। नवंबर 2008 में उसने पुलिस के सामने अपराध कबूल किए और दिसंबर 2008 में पहचान परेड में गवाहों ने उसे हमलावर के रूप में पहचाना। जनवरी 2009 में एमएल तहलियानी विशेष जज बने, और फरवरी 2009 में उज्जवल निकम को सरकारी वकील नियुक्त किया गया। उसी महीने 11,000 पन्नों की चार्जशीट दायर की गई, जिसमें हत्या, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आतंकवाद जैसे 86 आरोप शामिल थे। मई 2009 में कसाब पर आरोप तय हुए, जिन्हें उसने नकार दिया। मई 2010 में विशेष अदालत ने उसे 80 अपराधों, जिसमें सामूहिक हत्या और देश के खिलाफ युद्ध शामिल था, का दोषी ठहराया। आखिरकार 6 मई 2010 को विशेष अदालत ने कसाब को फांसी की सजा सुनाई।

इसके बाद, कसाब ने अपनी सजा के खिलाफ अपील की। 2011 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखा। फिर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा पर मुहर लगा दी, यह कहते हुए कि कसाब ने कोई पश्चाताप नहीं दिखाया और वह खुद को ‘पाकिस्तानी देशभक्त’ मानता था।

ऑपरेशन एक्स के जरिए दी गई फांसी

कसाब ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सामने दया याचिका दायर की, लेकिन इसे 16 अक्टूबर 2012 को गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया। आखिरकार, 21 नवंबर 2012 को सुबह 7:30 बजे पुणे की यरवदा जेल में कसाब को फांसी दे दी गई। इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन एक्स’ नाम दिया गया, जो पूरी तरह गोपनीय था। फांसी से पहले, कसाब ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में दो टमाटर मांगे, लेकिन केवल एक खाया। उसने माफी मांगते हुए कहा, ‘अल्लाह कसम, ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी।’

कसाब का शव और पाकिस्तान का रवैया

फांसी के बाद, कसाब के शव को पाकिस्तान को सौंपने की पेशकश की गई, लेकिन पाकिस्तान ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद, कसाब का शव यरवदा जेल परिसर में ही दफना दिया गया। पाकिस्तान ने शुरू में कसाब को अपना नागरिक मानने से भी इनकार किया था, लेकिन भारत द्वारा सबूत पेश करने के बाद उसे स्वीकार करना पड़ा।

सुरक्षा और खर्च का विवाद

कसाब की गिरफ्तारी से लेकर फांसी तक, उसकी सुरक्षा और रखरखाव पर करीब 29.5 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसमें आर्थर रोड जेल में उसकी सुरक्षा के लिए 250 से अधिक आईटीबीपी जवानों की तैनाती और अन्य खर्च शामिल थे। इस खर्च को लेकर महाराष्ट्र और केंद्र सरकार के बीच विवाद भी हुआ।

अनुभव शाक्य

लेखक के बारे में

अनुभव शाक्य

2021 में IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करके ज़ी न्यूज से पत्रकारिता में एंट्री की। यूपी के एटा में जन्म लिया लेकिन पढ़ाई-लिखाई अलीगढ़ में हुई। करीब डेढ़ साल वहां देश-दुनिया की खबरें लिखने के बाद अब नवभारत टाइम्स में न्यूज टीम में काम कर रहे हैं। राजनीति, टेक्नोलॉजी और फीचर में रुचि रखने के साथ-साथ लिखने पढ़ने के शौकीन हैं। फिल्में और वेबसीरीज देखना खूब भाता है। अपने अंदाज में लिखना और बात करना पसंद है।… और पढ़ें

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